भारत की 75 साल की आज़ादी के महोत्सव के अवसर पर लिखी इस पुस्तक में 75 साल में स्वतंत्र भारत के विभिन्न दलों के शासन का, आम आदमी को केंद्र में रख कर विवेचन किया गया है। आम आदमी को क्या मिला? क्या असमानता बढ़ी? क्या इसी भारत का सपना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था? किताब, भारतीय संविधान में भारत को एक वेलफेयर स्टेट की मान्यता की बात करती है और संविधान के नीति निर्देशक सिध्दांतो और संविधान सभा की बहस जैसे तथ्यों के माध्यम से स्थापित करती है। लेखक का मानना है कि आम आदमी की शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली-पानी व रोजगार जैसी न्यूनतम जरूरतें पूरा करना सरकारों की संवैधानिक जिम्मेदारी ही नहीं राष्ट्र निर्माण की पहली शर्त है। पुस्तक तथ्यों के साथ भारत की बढ़ती बेरोजगारी, कृषि संकट, गरीबी, पलायन, सार्वजनिक शिक्षा व स्वास्थ्य का गिरता स्तर और आर्थिक असमानताओं का कारण सरकारों की पूंजीवादी नीतियाँ और शासन में आम आदमी की जगह खास आदमी की प्राथमिकता होना उजागर करती है। किताब के अनुसार, महात्मा गांधी का सर्वोदय और दीनदयाल उपाध्याय के अन्तोदय को क्रमश: कांग्रेस और भाजपा ने अपने शासन का आधार होने का दावा तो किया लेकिन शासन केवल वोट और नोट के सिध्दांत पर कर, आम आदमी की उपेक्षा ही की। किताब परिभाषित करती है कि एक आम आदमी को एक सुशासन व्यवस्था से क्या चाहिये और उसे सुशासन देने में क्या रोड़े है और सवाल उठाती है कि क्या भारत के सन्साधनो पर पूंजी का सबसे पहला अधिकार होना चाहिए या भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में उस आम आदमी का, जो विकास के अंतिम पायदान पर खड़ा है? शासन के मिथ जैसे मुफ्तखोरी (फ्रीबीज), आयकर और बढती जनसंख्या को तथ्यों के आधार पर खारिज करती पुस्तक भारत की युवा शक्ति का दोहन कर, आज के भारत के जनसांख्यिकीय विभाजन (Demographic dividend) को भारत के विकास का इंजन बनाने के लिए एंटरप्रेन्योर क्रान्ति लाने जैसे प्रयासो की वकालत भी करती है पुस्तक भारत के लोकतन्त्र के तीन स्तम्भो की सक्रियता/असक्रियता और उनके घटते स्तरों के कारणों के साथ साथ भारत के चौथे स्तम्भ मीडिया पर पूंजी के प्रभाव और उसके परिणामों की चर्चा करते हुए कुछ उम्मीदों की किरणो जैसे शिक्षा व स्वास्थ्य क्षेत्रो में ज्यादा निवेश तथा डोर-स्टेप डिलीवरी जैसे प्रयोगो की वकालत भी करती है। अन्त में लेखक आम आदमी के लिए गवर्नेंस का राइट एंगल तलाशता हुआ भारत में विभिन्न दलों दूवारा प्रस्तुत सुशासन माडल की पड़ताल विश्व विख्यात अर्थशास्त्रियों के विचार और जमीन पर मौजूद साक्ष्यों से करता हुआ, आम आदमी केन्द्रित मॉडल को भारत की जरूरत बताता है और इसे ड्यूक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अनिरूद्ध कृष्णा के विकास के फ्रेमवर्क पर परखता भी है। हिन्दी में लिखी पुस्तक में 230 पेज है और तथ्यों के 77 फुटनोट, लिंक के साथ मौजूद हैं। इसके अलावा सन्दर्भ पुस्तकों को परिशिष्ट में दिया गया है। समाज के विभिन्न वर्ग के सबुध्द और प्रमुख नागरिकों ने पुस्तक को सराहा भी है।