यह काव्य संकलन "सरिता संवेदनाओं की" नारी के उत्पीड़न और समाज में नारी की दुर्दशा को प्रदर्शित करता है। सारी जिम्मेदारियां का बोझ अपने ऊपर उठाने के बावजूद भी वह जिस सम्मान की हकदार है, वह उसे नहीं मिलता। ऊंचाई पर पहुंचने के बावजूद भी उसे घरेलू हिंसा, बलात्कार, यौन शोषण, असमानता, भेदभाव, चरित्रहीनता जैसे लांछन लगाकर और निर्वस्त्र कर उसकी लज्जा को तार-तार कर उसे शारीरिक और मानसिक पीड़ाएं दी जाती है। ऐसी घटनाएं पूरे देश को सवालों के कटघरे में खड़ा करती है।एक तरफ नारी के सशक्तिकरण की बातें होती हैं, और हम महिला दिवस मनाते हैं। दूसरी तरफ नारी को कमजोर और अबला समझ उसके साथ अत्याचार करते हैं। निर्दोष को तो कानून भी सजा नहीं दे सकता फिर नारी को उसकी मासूमियत और बेगुनाही की सजा क्यों दी जाती है? क्या उसका स्त्री जन्म लेना ही अपराध है या फिर पुरुष प्रधान समाज होने की सजा नारी को भुगतनी नहीं पड़ती है। अब सिर्फ एक ही रास्ता नजर आता है वह है स्त्री प्रधान समाज! एक तो पुरुष बलवान है ! और स्त्री निर्बल, और उसके ऊपर पुरुष सत्ता का नशा आखिर नारी जाए कहां?