एक लड़की थी। अकेली और तन्हा। उसे लगता उसे कोई नहीं समझता। बहुत बार बताने के बाद लोग उसे समझ पाते। वो थक जाती, समझाते। किसी से बात करने का ही दिल नहीं करता। फिर एक दिन जिस कोने में वो बैठी थी, उसी कोने से उसे दूसरे कोने में बैठी और एक लड़की दिखी। उसे हैरानी हुई! क्या मेरे जैसा और भी कोई है? वहां बैठी लड़की ने उसे देखा। हौले से मुस्कुरायी, डरते डरते। लड़की भी मुस्कुरायी। बस फिर क्या था? मुस्कुराहटें बढ़ती चली गयीं! जैसे मुरझाती कलियाँ खिल उठीं। अब न समझना पड़ता, और न समझाना। न थकान न अकेलापन। ये जादू नहीं है, ये दोस्ती है - दो सहेलियों की दोस्ती। मित्रता कितना कमाल का भाव है ना? दोस्ती बहुत अनोखी चीज़ है, क्योंकि सिर्फ यही रिश्ता है जिसे आप पूरी तरह से खुद चुनते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि दोस्त किस परिवार से है, कितना मालदार खानदान है उसका या कहां रहता है । यूं तो दोस्ती सभी तरह से खास है, लेकिन महिलाओं की मैत्री एक अलग ही भावना सागर में गोते लगाती रहती है! इस रिश्ते में प्रेम है, सम्मान है, बहनापा भी है ; कभी कभी तो मातृत्व भी है! पर सिर्फ अच्छी अच्छी बातें नहीं, दो स्त्रियां दोस्ती में बहुत से धूसर रंगों को भी लिए रहती हैं, जैसे जलन, द्वेष, हीन भावना और भी ना जाने क्या क्या... लेकिन ये पूरा मित्रता ब्रह्मांड ही अनोखेपन से परिपूर्ण है। कभी दो बहनें सहेलियां होती हैं, कभी घर की सदस्याएं भी, ये रिश्ता सीमित नहीं है! जितना जाना पहचाना उतना ही अंजाना भी... कहते हैं ना, एक महिला ही दूसरी महिला की दुश्मन होती है : एक महिला बहुत कुछ हो सकती है ... सहेली होना उसका एक बहुत व्यापक रूप और प्रारूप है।